केन्द्रीय इस्पात मंत्रालय ने स्टील स्क्रैप के पुनर्चक्रण की नई नीति जारी की है। इस्पात मंत्रालय का प्रयास अत्याधुनिक पर्यावरण अनुकूल तकनीकों को अपनाकर विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी इस्पात उद्योग विकसित करना है। ईएएफ/आईएफ आधारित इस्पात उत्पादन के लिए लौह स्क्रैप प्राथमिक कच्चा माल होने के कारण, नीति में भारत में धातु कचरों के निस्तारण के लिए केन्द्रों की स्थापना को बढ़ावा देने के लिए एक रूपरेखा तय करने की व्यवस्था की गई है। यह विभिन्न स्रोतों से उत्पन्न धातु कचरे के वैज्ञानिक प्रसंस्करण और पुनर्चक्रण प्रक्रिया को सुनिश्चित करेगा। यह नीति एक संगठित, सुरक्षित और पर्यावरण अनुकूल तरीके से धातु कचरों के संग्रहण और निस्तारण के लिए मानक दिशा-निर्देश प्रदान करेगी।
इस्पात एक ऐसी धातु है जो पुनर्चक्रण पर आधारित अर्थव्यवस्था के अनुकूल है क्योंकि इसका उपयोग, पुन: उपयोग, लगातार पुनर्चक्रण कर हर बार किया जा सकता है। लौह अयस्क इस्पात बनाने का जहां प्राथमिक स्रोत बना हुआ है वहीं इस्पात स्क्रैप इस्पात उद्योग के लिए दूसरा कच्चा माल है । भारतीय इस्पात उद्योग बड़ी संख्या में ऐसे छोटे स्टील उत्पादकों के लिए विशेष रूप से पहचाना जाता है जो जो ईएएफ / आईएफ में स्टील बनाने के लिए अन्य कच्चेमाल के साथ स्टील स्क्रैप का भी उपयोग करते हैं। मार्च 2019 तक, देश में ऐसे 47 इलेक्ट्रिक आर्क फर्नेस और 1128 इंडक्शन फर्नेस काम कर रहे हैं जो मोटे तौर पर इस्पात के उत्पादन के लिए कच्चे माल के रूप में इस्पात स्क्रैप पर निर्भर हैं।
राष्ट्रीय इस्पात नीति 2017 का उद्देश्य 2030 तक प्रति वर्ष 300 मिलियन टन इस्पात उत्पादन क्षमता विकसित कर देश के इस्पात उद्योग को वैश्विक रूप से प्रतिस्पर्धी बनाना है।
नई नीति में ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी लाने के लिए स्क्रैप आधारित स्टील बनाने की प्रौद्योगिकियों को एक महत्वपूर्ण विकल्प के रूप में परिकल्पित किया गया है। यह ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिए इस्पात क्षेत्र की एक महत्वपूर्ण पहल के रूप में होगा। यह पर्यावरण को किसी भी प्रतिकूल प्रभाव से बचाने के लिए रिड्यूस, रियूज, री-साईकिल, रि-कवर, रि-डिजाइन और रि-मेन्युफैक्चर के सिद्धांत को अपनाने में योगदान करेगा और सतत विकास की नींव को मजबूत करेगा।
स्टील उत्पादन में स्टील स्क्रैप को मुख्य कच्चे माल के रूप में इस्तेमाल करने की नीति को दुनियाभर में बढ़ावा दिया जा रहा है, क्योंकि स्क्रैप के पुनर्चक्रण से अन्य चीजों के अलावा महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण में मदद मिलती है। प्रत्येक टन स्क्रैप के उपयोग से 1.1 टन लौह अयस्क, 630 किलोग्राम कोकिंग कोल और 55 किलोग्राम चूना पत्थर की बचत होगी। स्क्रैप के इस्तेमाल से विशिष्ट ऊर्जा खपत में भी काफी बचत होगी।
भारत में स्टील स्क्रैप की उपलब्धता एक प्रमुख मुद्दा है। 2017 में मांग की तुलना में इसकी आपूर्ति 7 मिलियन टन कम रही थी। वर्ष 2017-18 में 24,500 करोड़ रुपये से ज्यादा की लागत से इसका आयात किया गया था। नई इस्पात स्क्रैप नीति से भविष्य में स्टील स्क्रैप की मांग और आपूर्ति के बीच के अंतर को कम किया जा सकेगा और 2030 तक स्टील स्क्रैप के मामले में देश आत्मनिर्भर हो सकेगा।
स्क्रैप नीति यह सुनिश्चित करेगी कि इस्पात उद्योग को बेहतर स्क्रैप मिल सके। बिजली की भट्टियों के लिए स्क्रैप महत्वपूर्ण होता है। अगर बिजली की भट्टियों को चलाने के लिए बेहतर स्क्रैप मिलता है, तो इन भट्टियों से उच्च गुणवत्ता वाले इस्पात का उत्पादन होगा। उच्च गुणवत्ता वाले इस्पात स्क्रैप में अशुद्धियां नहीं होती हैं, बशर्ते उनका प्रसंस्करण स्क्रैप प्रसंस्करण इकाइयों में श्रेडर के जरिए किया जाए।
उच्च गुणवत्ता वाले इस्पात स्क्रैप को री-साइकिल करने पर दोबारा उच्च गुणवत्ता वाले इस्पात का उत्पादन होता है, जो निर्माण इकाइयों, वाहन उद्योगों तथा अन्य सहायक उद्योगों में इस्तेमाल होता है। कम अशुद्धि वाला या बिल्कुल शुद्ध स्क्रैप को निर्माण उद्योग में आमतौर पर इस्तेमाल किया जाता है। अगर देश में बेहतर प्रसंस्करण वाले स्क्रैप का उत्पादन होगा, तो न सिर्फ आम स्क्रैप के आयात में कमी आएगी, बल्कि उच्च गुणवत्ता वाले इस्पात के आयात में भी कमी आएगी। उच्च गुणवत्ता वाले इस्पात का अभी देश में आयात किया जाता है।
घरेलू असंगठित स्क्रैप उद्योग से इस समय 25 मीट्रिक टन स्क्रैप की आपूर्ति होती है तथा 7 मीट्रिक टन स्क्रैप आयात किया जाता है। इस 7 मीट्रिक टन स्क्रैप के आयात में कमी लाने के लिए देश को इस समय 70 स्क्रैप प्रसंस्करण केन्द्रों को जरूरत है, जिनकी क्षमता एक लाख टन होनी चाहिए। राष्ट्रीय इस्पात नीति के तहत इस्पात का उत्पादन 250 मीट्रिक टन तक पहुंचाने के लिए स्क्रैप का उत्पादन 70 से 80 मीट्रिक टन तक होना चाहिए। इसके लिए 700 स्क्रैप प्रसंस्करण केन्द्रों की जरूरत होगी।
स्क्रैप उद्योग में मिलने वाले रोजगार के मद्देनजर एक स्क्रैप प्रसंस्करण केन्द्र में 400 लोगों को रोजगार मिलेगा। इस प्रकार 7 मीट्रिक टन स्क्रैप उत्पादन क्षमता वाले 70 इकाइयों में कुल 2800 लोगों को रोजगार प्राप्त होगा। राष्ट्रीय इस्पात नीति 2017 के तहत अगर देश 70 मीट्रिक टन इस्पात का उत्पादन करे तो लगभग तीन लाख लोगों को रोजगार मिल सकता है। इसके अलावा कूड़ा जमा करने वालों, कबाड़ी वालों इत्यादि को प्रशिक्षण देकर उनकी क्षमता बढ़ाई जा सकती है।