राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 27 नवम्बर दिल्ली में 15वें फिक्की उच्च शिक्षा सम्मेलन को संबोधित किया। इस सम्मेलन का आयोजन मानव संसाधन विकास और वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के सहयोग से भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग महासंघ कर रहा है।
इस अवसर पर राष्ट्रपति ने कहा कि भविष्य में दुनिया ज्ञान, मशीन-बुद्धिमता और डिजिटल माध्यमों से चलेगी। इस बदलाव के लिए खुद को तैयार करने के लिए और इसके असीमित अवसरों का लाभ उठाने के लिए नए पाठ्यक्रमों और गहन अनुसंधान नीति के साथ हमें उच्च शिक्षा में बदलाव करना होगा। हमारे पाठ्यक्रम में नए विचार और नवाचार को प्राथमिकता मिलनी चाहिए। भारत पूरी दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा वैज्ञानिक मानव संसाधन वाला देश है। यदि हम शिक्षा को उद्योगों से मजबूती से जोड़ेंगे तो हम दुनिया में अनुसंधान एवं विकास केंद्र के रूप में उभर सकते हैं। उन्होंने कहा कि विज्ञान के साथ कला और मानविकी से जुड़े विषयों पर भी बराबर ध्यान देना होगा ताकि प्रौद्योगिकी के फल आखिरकार लोगों, समुदाय और संस्कृति के लिए प्रासंगिक हो सकें।
राष्ट्रपति ने कहा कि पूछताछ के भाव, गहराई से सोचने और किसी मुद्दे या विषय के संदर्भ में क्या, कैसे एवं क्यों जैसे सवाल पूछने की संस्कृति विकसित करने का प्रयास होना चाहिए। उन्होंने कहा कि हमारे छात्रों की सृजनात्मकता, कल्पनाशीलता और विचारों को उभारने का मौका देने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि शिक्षा में इस पुनर्जागरण को लाने के लिए सोच में सामंजस्य बनाने और शैक्षणिक नेतृत्व, छात्र-शिक्षक संबंध और प्रौद्योगिकी एकीकरण के स्तर सहित कई मोर्चों पर नई अवधारणाओं को अपनाने की जरूरत है।
राष्ट्रपति ने कहा कि उच्च शिक्षा काफी महंगी हो गई है। उच्च शिक्षा के विकास और इसे छात्रों को सशक्त बनाने लायक करने के लिए हमें नीति-निर्माताओें, शिक्षाविदों, अनुसंधानकर्ताओं, उद्यमियों और अन्य लोगों की मदद की जरूरत है। देश की सामाजिक-आर्थिक सच्चाई को समझते हुए सार्वजनिक संस्थान अहम भूमिका निभाएंगे। राष्ट्रपति ने कहा कि इसके साथ ही निजी क्षेत्र को भी राष्ट्रीय कोशिशों के साथ अपना अहम योगदान जारी रखना होगा।